Friday, June 4, 2010

परछाइयाँ

परछाइयाँ
डा. गुलाम मुर्तज़ा शरीफ़


बेकराँ सोज़ से लबरेज़ है परछाइयाँ,
हर तरफ, हर सिम्त मिल जाती हैं परछाइयाँ
जब कभी हम सुनाते हैं हाल -ए- दिल
वो चली जाती हैं, मुस्कराती है परछाइयाँ

मौत आएगी और चले जाऐंगे हम
चंद यादें, मुस्कराहटें , रह जाऐंगी परछाइयाँ
कह रहा है मौत से, काली रातों का सुक़ूत
सुब्ह की पहली किरण, ले आएगी परछाइयाँ

नफरतों को तर्क कर, प्यार करना सीख लो
प्यार करना सीख लो, मुस्कुराना सीख लो
ऊँच नीच के भेद - भाव, अगर बाक़ी रहे
फिर तुम्हारे क़द से ऊँची हो जाएगी परछाइयाँ

कौन कहता है, मौत आएगी, मर जाऊँगा, मैं
मुस्कुराते, गीत गाते, आएगी, मेरी परछाइयाँ
एक मुद्दत हो गई, गुज़रे हुए उनको ’शरीफ’
रोज़ ख़्वाबों में नज़र आती है क्यों परछाइयाँ

6 comments:

  1. doktr ghulaam saahb aadaab aapke alfaazon ki khushbu se men tr ptr ho gyaa khudaa kre in alfaazon ko ghzl ke saanche men dhaalne vaale shkhs se jldi meri mulaaqat ho bs khudaa se yhi duaa he. akhtar khan akela kota rasjsthan

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  2. "नफरतों को तर्क कर, प्यार करना सीख लो
    प्यार करना सीख लो, मुस्कुराना सीख लो
    ऊँच नीच के भेद - भाव, अगर बाक़ी रहे
    फिर तुम्हारे क़द से ऊँची हो जाएगी परछाइयाँ"

    बहुत खूब लिखा है डॉक्टर साहब आपने |

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  3. मौत आएगी और चले जाऐंगे हम
    चंद यादें, मुस्कराहटें , रह जाऐंगी परछाइयाँ
    डॉ. ग़ुलाम मुर्तज़ा शरीफ़ साहेब आप बेहतरीन लिखते हैं. क्या आप के कलाम मैं अपने ब्लॉग पे , अपनी पोस्ट मैं शामिल कर सकता हूँ. मैं इंडिया से अमन और एकता पे काम कर रहा हूँ.

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  4. नफरतों को तर्क कर, प्यार करना सीख लो
    प्यार करना सीख लो, मुस्कुराना सीख लो
    ऊँच नीच के भेद - भाव, अगर बाक़ी रहे
    फिर तुम्हारे क़द से ऊँची हो जाएगी परछाइयाँ

    aise paakeeza khayaalaat par koi tabsera karnaa
    mere bs ki baat nahi...
    bahut hi umdaa
    bahut shandaar
    waah !

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  5. S.M.MAsum main mohabbat karne walon ki qadr karta hoon aapko ijazat hai meri kavita apne blog mein post karne ki.
    Shukriya
    Dr. Shareef

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  6. कौन कहता है, मौत आएगी, मर जाऊँगा, मैं
    मुस्कुराते, गीत गाते, आएगी, मेरी परछाइयाँ
    एक मुद्दत हो गई, गुज़रे हुए उनको ’शरीफ’
    रोज़ ख़्वाबों में नज़र आती है क्यों परछाइयाँ
    डॉक्टर शरीफ साब <
    आदाब !
    ये शेर आप कि नज़र है .उम्दा ग़ज़ल पढने को मिली ,
    साधुवाद
    आभार

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