Tuesday, June 1, 2010

सत्यम्‌ शरणम्‌ गच्छामि
डा. गुलाम मुर्तज़ा शरीफ़

हमने पूछा--
कहाँ महाराज?

कहा--
सत्य की तलाश में!

पहिचानोगे कैसे?
चुप रहे,
अन्यमनस्क, विचलित से,
कहना चाहा, कह न सके।

हमने कहा-
सत्य तो निराकार है!
वह एक है,
निराधार एवं सर्वाधार है!
उसकी कोई संतान नहीं,
न वह किसी की संतान है!
कोई उसके बराबर नहीं!
सब प्रशंसा उसी के लिए है!
सारे संसार का पालनहार है!
अत्यन्त कृपाशील एवं दयावान है!
"अंतिम न्याय" के दिन का मालिक है।
सब उसी की बंदगी करते हैं।
उसी से मदद माँगते हैं!
वही सीधा मार्ग दिखाता है!
हर जगह विराजमान है!
जल में, थल में।
अवनी और अम्बर में।
तुझमें - मुझमें!
वह तो स्वयं कहता है--
सर्वस्य चाहं हृदि संनिविष्टो,
मत्त: स्मृतिर्ज्ञनमपोहनं च।
वह हमारे इतने क़रीब है, कि,
हम देख नहीं पाते।
उसने सारे संसार की सृष्टि की।
हर युग में अपना
प्रतिनिधि भेजा।
यही सत्य है!!

महाराज सुनते रहे, फिर बोल पड़े-
सत्यम्‌ शरणम्‌ गच्छामि!
ईश्वरम्‌ शरणम्‌ गच्छामि!

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