Thursday, June 3, 2010

खारा प्रियतम

खारा प्रियतम

प्रकृति से अनुभव लेकर ,
इठलाती बलखाती चलकर ,
नित सपनों के गीत संजोये ,
कल-कल, छल-छल गाती फिरती ,
जाती हूँ साजन से मिलने |

पर वह कितना हरजाई है ,
मुझमें स्थित मीठेपन को
कर देता है खरा ||

देख तो आखिर प्रेम को मेरे
उसका खारापन भी मुझको
लगता है मीठा ||

न जाने कब से पागल 'बादल'
पीछा करता शोर मचाता -
वह ठहरा 'आकाश का वासी'
क्या जाने वह प्रेम धरा का !

वह ना पा मुझको रोता, गरजता ,
और नयनों से नीर बहता |
इतना रोता , इतना रोता
कर देता मुझको भी पागल |

अकुलाहट को देखकर उसकी ,
ह्रदय में मेरे तूफान है उठता |
धर मैं अपना रूप भयंकर ,
दौड़ी सजन के पास पहुँचती |

"सागर" साजन है विशाल ह्रदय ,
धीरे-धीरे थपकी देकर ,
ले लेता भयंकरता मेरी |

शायद बादल के आंसू से ,
हो गया है मेरा प्रियतम भी "खारा"

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