Friday, June 25, 2010

आरंभ Aarambha: पारंपरिक छत्‍तीसगढ़ी गीत हिन्‍दी अनुवाद सहित : हो गाड़ी वाला रे....

आरंभ Aarambha: पारंपरिक छत्‍तीसगढ़ी गीत हिन्‍दी अनुवाद सहित : हो गाड़ी वाला रे....
कई वर्षों के बाद आज अपनी मातृभूमि की भाषा पढने को मिली , अच्छा लगा |
यिक पुराना गीत जिसे ५० साल पूर्व सुना था यदि दुबारा मिल जाय तो कृतध्न होऊंगा |
कुछ इस प्रकार है .....तिरियाले डोंगा ला केंवट-आ रे ,
झिन जाबे नदिया के पार ||
धन्यवाद् |
डॉ. ग़ुलाम मुर्तजा शरीफ
अमेरिका

Friday, June 4, 2010

परछाइयाँ

परछाइयाँ
डा. गुलाम मुर्तज़ा शरीफ़


बेकराँ सोज़ से लबरेज़ है परछाइयाँ,
हर तरफ, हर सिम्त मिल जाती हैं परछाइयाँ
जब कभी हम सुनाते हैं हाल -ए- दिल
वो चली जाती हैं, मुस्कराती है परछाइयाँ

मौत आएगी और चले जाऐंगे हम
चंद यादें, मुस्कराहटें , रह जाऐंगी परछाइयाँ
कह रहा है मौत से, काली रातों का सुक़ूत
सुब्ह की पहली किरण, ले आएगी परछाइयाँ

नफरतों को तर्क कर, प्यार करना सीख लो
प्यार करना सीख लो, मुस्कुराना सीख लो
ऊँच नीच के भेद - भाव, अगर बाक़ी रहे
फिर तुम्हारे क़द से ऊँची हो जाएगी परछाइयाँ

कौन कहता है, मौत आएगी, मर जाऊँगा, मैं
मुस्कुराते, गीत गाते, आएगी, मेरी परछाइयाँ
एक मुद्दत हो गई, गुज़रे हुए उनको ’शरीफ’
रोज़ ख़्वाबों में नज़र आती है क्यों परछाइयाँ

Thursday, June 3, 2010

खारा प्रियतम

खारा प्रियतम

प्रकृति से अनुभव लेकर ,
इठलाती बलखाती चलकर ,
नित सपनों के गीत संजोये ,
कल-कल, छल-छल गाती फिरती ,
जाती हूँ साजन से मिलने |

पर वह कितना हरजाई है ,
मुझमें स्थित मीठेपन को
कर देता है खरा ||

देख तो आखिर प्रेम को मेरे
उसका खारापन भी मुझको
लगता है मीठा ||

न जाने कब से पागल 'बादल'
पीछा करता शोर मचाता -
वह ठहरा 'आकाश का वासी'
क्या जाने वह प्रेम धरा का !

वह ना पा मुझको रोता, गरजता ,
और नयनों से नीर बहता |
इतना रोता , इतना रोता
कर देता मुझको भी पागल |

अकुलाहट को देखकर उसकी ,
ह्रदय में मेरे तूफान है उठता |
धर मैं अपना रूप भयंकर ,
दौड़ी सजन के पास पहुँचती |

"सागर" साजन है विशाल ह्रदय ,
धीरे-धीरे थपकी देकर ,
ले लेता भयंकरता मेरी |

शायद बादल के आंसू से ,
हो गया है मेरा प्रियतम भी "खारा"

Dr. Ghulam Murtaza Shareef

Dr. Ghulam Murtaza Shareef